Sunday, June 26, 2016

पंखीड़ा रे- 4

नील गगन में उड़ने की प्यास अभी भी बाकी है
पंख खोल के उड़ने का वो एहसास अभी भी बाकी है
हांफ हांफ के सांस सांस में,
फल्लांग मार के उड़ चलने का अरमान अभी भी बाकी है

छूट गए उन रस्तों के निशान अभी भी बाकी है

कुछ भूले बिसरे गीतों के उन्वान अभी भी बाकी है
मुक्ति-गान अभी भी बाकी है

इन ज़र्ज़र होते पंखों के एहसान अभी भी बाकी है
हौसला-ए-उड़ान अभी भी बाकी है

सच-मुच
नील गगन में उड़ने की प्यास अभी भी बाकी है

पंखीड़ा रे - 3

डर लगता है
पंख खोलूँ और
टूट न जाये पिंजड़ा कहीं
पिंजड़ा टूटे और टूट न जाये सपना कोई
छूट न जाये अपना कोई
डर लगता है

पिंजड़ा अब अपना लगता है
अम्मा का अंचल जगता है
चुग्गे का दाना लगता है

डर लगता है ! डर लगता है !
ओ रे पंखिडे, हे सोंच ज़रा
पिंजड़े का मोह तुझको क्या फबता है?
पिंजड़े में भी कोई सपना, क्या कर कर पलता है?

खुले गगन में, तारों की नगरी में पलता है

इक अंगड़ाई तो ले, तू गर्दन को उठा और पंख खोल
उड़ चल अब पिंजड़े को तोड़
और अंबर अंबर गूंजे तेरी आज़ादी के बोल 

पंखीड़ा रे - 2

पंखों को आदाब सिखा कर उड़ने का हुनर ही भूल गया
उड़ते रह कर, कूक लगा कर अफ़साने गाना भूल गया
हमसफी छोड़ कर अपनों का ठिकाना  भूल गया
आब-ओ-दाना भूल गया
चुग्गे का दाना भूल गया

भूल गया, हाय! यूँही फ़िज़ूल गया

पंखीड़ा रे - 1

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

तू तो उड़ता था हवा हवा और नगर नगर
न भाता था तुझको तो, न घोंसला और नाही घर
तेरे हिस्से  था पूरा अंबर
घनघोर घटा, मेहा और नभ तारों का नगर

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

क्यों उपवन पाकर दूर गया तू इतना रे?
बगिया बगिया डाली डाली क्यों मंडराना भूल गया
फुदक फुदक के उछल उछल के क्यों इतराना भूल गया
दाना पाके चुग्गा खाके क्यों मुस्काना भूल गया

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

क्यूँ भाया तुझको  इतना रे, इन पुष्पों का आडम्बर?
यह सूरत, रंग-ओ-खुशबू का बवंडर?

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

क्यूँ भुला है तू उड़ना रे?
इतना भी क्या? उड़ान बिना यह घोसला रे

पंख गंवा कर, हवा गुमा के, हर घाट का पानी चखना भूल गया

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

Friday, March 14, 2014

नाक पुराण - एक

ओ हुक्मरान !

गर चाहे तो तू 
तेरी नाक पे काला टीका लगवाले 
नीम्बू -मिर्ची का झाड़ उगा ले 
डर लगे तो बुल्लेट-प्रूफ उढ़ा ले  
ए टू ज़ेड सेक्युरिटी लगवाले  
जासूसों कि फ़ौज लगा ले 

नुमाइश लगा के, ऊँची बोली लगवाके, कीमत बढ़वाले 

लेकिन याद रख 
ज़ुलमतों के दौर में भी गीत  गाए जाएंगे 

और जिस दिन ये मज़लूम जाग जाएंगे 
तेरी नाक में घुस जाएंगे 
निम्बू-मिर्ची लगा, नमक छिड़क कर 
तेरी नाक का कचुम्बर 
लिट्टी के संग खा जाएंगे 

ओ हुक्मरान ! तेरी नाक कि तो ! … बजा जाएंगे 

और नाक-नाक में, सांस-साँस में 
आज़ादी के तराने गायेंगे  

ओ हुक्मरान !
याद रख 
ज़ुलमतों के दौर में भी गीत गाए जाएंगे





Monday, July 29, 2013

धरम

बेटा ये दिल जो है ना
धरम पूछ के नहीं धड़कता

दिल का धरम ही धड़कना है

फिर धड़क ना ऐ दिल
ज़ोर से धड़क
बे-अदबों सा
बद्तामीजों सा बेधड़क
धड़क ज़रा आवारगी से 

Thursday, January 10, 2013

टनल (Tunnel)


हमने जो अपनी यह दुनिया बसाई है 
सदिओं से यह टनल सी नज़र आई है 

आसमान, ज़मीन, दुआर
मंदिर-मस्जिद-गिरजा, बाज़ार 
मोटर, जेट और सरकार 
घर-बार-बसेरा 
सबेरा से गदबेरा 
सब टनल के भीतर 
कौआ-हंस , बटेर-तीतर 
बाप-भाई, बहु-बेटी, ससुराल-पीहर 
बाहर कम, ज्यादा भीतर 
 
टनल तो  है साबूत-मज़बूत 
इक दिन बनेगा सबका ताबूत 

तो कर सको तो करो जतन 
और 
खिड़की से सतरंगी स्क्रीन को करो रोल 
खिड़की को तो ज़रा दो खोल 
चौखटे को चाक कर 
दरवाजों  को आज़ाद कर
मांद छोड़ तबियत से लगाओ छलांग
हम-सफों का बैंड बनाओ 
साजो-सुर लगाओ 
आज़ादी के गीत गाओ 
सुर्ख सवेरे से करो रौशन 
कोना-कोना, पोर-पोर 
टनल के कोने में आजादी की भोर