Friday, March 14, 2014

नाक पुराण - एक

ओ हुक्मरान !

गर चाहे तो तू 
तेरी नाक पे काला टीका लगवाले 
नीम्बू -मिर्ची का झाड़ उगा ले 
डर लगे तो बुल्लेट-प्रूफ उढ़ा ले  
ए टू ज़ेड सेक्युरिटी लगवाले  
जासूसों कि फ़ौज लगा ले 

नुमाइश लगा के, ऊँची बोली लगवाके, कीमत बढ़वाले 

लेकिन याद रख 
ज़ुलमतों के दौर में भी गीत  गाए जाएंगे 

और जिस दिन ये मज़लूम जाग जाएंगे 
तेरी नाक में घुस जाएंगे 
निम्बू-मिर्ची लगा, नमक छिड़क कर 
तेरी नाक का कचुम्बर 
लिट्टी के संग खा जाएंगे 

ओ हुक्मरान ! तेरी नाक कि तो ! … बजा जाएंगे 

और नाक-नाक में, सांस-साँस में 
आज़ादी के तराने गायेंगे  

ओ हुक्मरान !
याद रख 
ज़ुलमतों के दौर में भी गीत गाए जाएंगे





Monday, July 29, 2013

धरम

बेटा ये दिल जो है ना
धरम पूछ के नहीं धड़कता

दिल का धरम ही धड़कना है

फिर धड़क ना ऐ दिल
ज़ोर से धड़क
बे-अदबों सा
बद्तामीजों सा बेधड़क
धड़क ज़रा आवारगी से 

Thursday, January 10, 2013

टनल (Tunnel)


हमने जो अपनी यह दुनिया बसाई है 
सदिओं से यह टनल सी नज़र आई है 

आसमान, ज़मीन, दुआर
मंदिर-मस्जिद-गिरजा, बाज़ार 
मोटर, जेट और सरकार 
घर-बार-बसेरा 
सबेरा से गदबेरा 
सब टनल के भीतर 
कौआ-हंस , बटेर-तीतर 
बाप-भाई, बहु-बेटी, ससुराल-पीहर 
बाहर कम, ज्यादा भीतर 
 
टनल तो  है साबूत-मज़बूत 
इक दिन बनेगा सबका ताबूत 

तो कर सको तो करो जतन 
और 
खिड़की से सतरंगी स्क्रीन को करो रोल 
खिड़की को तो ज़रा दो खोल 
चौखटे को चाक कर 
दरवाजों  को आज़ाद कर
मांद छोड़ तबियत से लगाओ छलांग
हम-सफों का बैंड बनाओ 
साजो-सुर लगाओ 
आज़ादी के गीत गाओ 
सुर्ख सवेरे से करो रौशन 
कोना-कोना, पोर-पोर 
टनल के कोने में आजादी की भोर  

Tuesday, January 1, 2013

तक़सीम


मेरे बर्थडे की खीर 
मलाई में चूर 
मिठास में भरपूर 
सालों-साल बदस्तूर 

करो तक़सीम  
पहले मिस्कीन का हिस्सा निकल कर 
सबों में करो तकसीम 
कोई छूटा हो तो 
सबकी कटोरी से थोडा निकाल 
बराबर से बांटो 

एक तक़सीम ऐसा 
बराबर की हो हिस्सेदारी 
ना ज़्यादा मेरी ना कम तुम्हारी 

एक ऐसा भी 
धर्म वाली, ज़ात वाली, वर्ग-नस्ल-लिंग वाली 
बंटवारा हुआ ज़रूर 
मेरे आक़ा मेरे हुज़ूर 
बदस्तूर 
हिस्सेदारी का नहीं 
इन्सां को इन्सां से लड़ाने का 
कब्ज़े का, हथिआने का 

Saturday, December 29, 2012

पानी

एक-

पानी जब अपनी ज़ात दिखाता है 
तो पसीना छुड़ाता है 
पैंट गीली कर
हवा टाईट कर
लुटिया डुबो जाता है  
अपना अंजाम खुद बना जाता है 
एक नया धाम बना जाता है 

दो-

पानी कुछ नहीं बोलता 
चुप रहता हैं 
गुनगुनाता है बर्तन के भीतर 
जब उबलता है तो 
मचल जाता है 
उफन जाता है 
भाप बन जाता है 
हलचल मचा जाता है 
कोने कोने में भर जाता है 
बरस जाता है 
इमां बना जाता है 

एक, दो, तीन कविताएँ


एक- 

मौन हूँ  
मुंह में खंजर से तेज़ जुबां  रखा है 
आँखों में जुर्रत 
दिलों में तूफ़ान छुपा रखा है 

दो- 

ज़रुरत हैं आंच दिखाने की 
ताप-ताप कर 
खून को खून बनाने की 

तीन-

मुंसिफी न काम आएगी 
न फिज़ा न ये अदा 
और न अंदाज़े-बयाँ काम आएगी 
काम आएगी तो सिर्फ जुर्रते-जवानी आएगी 
सर्द पानी सी जिंदगानी तो पानी के भाव बिक जाएगी 
बाज़ारों में नज़र आएगी  
बाजारू कहलाएगी 

Tuesday, December 11, 2012

नाम

एक नाम उधारी का 
दे सको तो दो 
फ़क़त एक नाम 
जिस से नफ़रत कोई कर ना सके 
बदला कोई ले ना सके 
हत्या कोई कर ना सके 
एक नाम 
फ़क़त एक नाम उधारी का