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Tuesday, July 27, 2010

मैं सुरक्षित क्यूँ हूँ ?

सुना है किसी को कहते
सब के सब, पूरी दुनिया असुरक्षित है
किस्से, कहानियां, कविताएँ
सब के सब असुरक्षित

बागों कि कालियां असुरक्षित
मोहल्ले कि गलियां असुरक्षित
किताबों की परियां असुरक्षित

माओं की गोद असुरक्षित
और अम्मा की लोरियां भी असुरक्षित

शब्द असुरक्षित
शब्दों के अर्थ असुरक्षित
चित्र असुरक्षित
चित्रों के रंग असुरक्षित
इतिहास असुरक्षित
विज्ञानं असुरक्षित
इन्सां का ज्ञान असुरक्षित

मस्जिदों की अजां असुरक्षित
मंदिरों की आरती
तो गुरूद्वारे की गुरवान असुरक्षित

इन्सां की जान असुरक्षित
पहचान असुरक्षित
सम्मान असुरक्षित

सब कुछ है असुरक्षित !
लेकिन मैं ?

मैं सुरक्षित कैसे और क्यूँकर हूँ ?
कहीं यह विचार मात्र तो नहीं ?