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Saturday, October 16, 2010

तस्वीर- १

ख़्वाबों की सजिल्द किताब के
पन्नों को पलटता देखता
आगे-पीछे, एक-एक कर के
बारी-बारी बार-बार
एक बार, हर बार
रुकता
उस पन्ने पर, एक मात्र पन्ने पर
जिसपे उभरी है तुम्हारी तस्वीर
उकेरी है मैंने जिसे
वोही तस्वीर
शब्दों की आँखें
शब्दों के रुखसार
और उन्हीं शब्दों की काजल की लकीर
शब्दों की कशिश
और शब्दों की हंसी
शब्द से शब्द तक, हर वक़्त
मिलती हो तुम
खामोश शब्दों सी

शब्द भी खामोश तेरे
तेरी ख़ामोशी से
अच्छा है शब्द बोलते नहीं
किताबों में बंद रहते हैं
मेरे ही तरह, तुम्हारी तरह
ज़ज्ब रहते हैं
सजिल्द किताबों के पन्ने पर