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Tuesday, December 6, 2011

हिचकी

कितने दिन हुए मझे हिचकी नहीं आई

लेकिन इन दिनों पुरानी यादें बार-बार दुहरा कर आई

कभी ख़्वाब बन

मुस्कराने का सबब बन कर

या कभी रुला जाने का कारण बन

आँखों के कोने का आब बन

तो कभी बार-बार आँखों के मलने पर लाल लहू बन

और रात-रात भर जाग-जाग कर ख़ुद को सुलाने का मक़सद बन कर


याद तो आई है हर बार

पुराने यार-दोस्त, अम्मी-पापा के क़िस्से

मेरे नखरे, थोड़ी झिड़की, थोड़ा प्यार

भईया की मार

आइस-क्रीम की रिशवत तो कभी कहानिओं की अंबार

वो बचपन का प्यार और जवानी की तक़रार

आई है याद बार-बार, हर बार


उन्हें तो आई होगी हिचकी ज़रूर मेरे याद करने पर

अब तो उन्हें आदत भी हो गई होगी हिचकिओं की शायद

या फिर उन्हें हिचकियाँ आती ही न हों शायद


मुझे क्यूँ नहीं आती है हिचकी बार-बार ?

सच बहुत दिन बीत गए हैं


हिचकिओं को दावत है की वो आएं

मेरा दामन पकड़ हाथ थाम

पुरानी यादों के नाम

एक बार तो आएं