कितने दिन हुए मझे हिचकी नहीं आई
लेकिन इन दिनों पुरानी यादें बार-बार दुहरा कर आई
कभी ख़्वाब बन
मुस्कराने का सबब बन कर
या कभी रुला जाने का कारण बन
आँखों के कोने का आब बन
तो कभी बार-बार आँखों के मलने पर लाल लहू बन
और रात-रात भर जाग-जाग कर ख़ुद को सुलाने का मक़सद बन कर
याद तो आई है हर बार
पुराने यार-दोस्त, अम्मी-पापा के क़िस्से
मेरे नखरे, थोड़ी झिड़की, थोड़ा प्यार
भईया की मार
आइस-क्रीम की रिशवत तो कभी कहानिओं की अंबार
वो बचपन का प्यार और जवानी की तक़रार
आई है याद बार-बार, हर बार
उन्हें तो आई होगी हिचकी ज़रूर मेरे याद करने पर
अब तो उन्हें आदत भी हो गई होगी हिचकिओं की शायद
या फिर उन्हें हिचकियाँ आती ही न हों शायद
मुझे क्यूँ नहीं आती है हिचकी बार-बार ?
सच बहुत दिन बीत गए हैं
हिचकिओं को दावत है की वो आएं
मेरा दामन पकड़ हाथ थाम
पुरानी यादों के नाम
एक बार तो आएं
Tuesday, December 6, 2011
Thursday, November 10, 2011
ब्रेकिंग न्यूज़
मालिक नौकर पे चिल्लाया
मंत्री संतरी पे खिसिआया
मदारी बन्दर को लाठिआया
आवारा-निकम्मा अपनी किस्मत को गरिआया
महलों का कुत्ता गली के कुत्ते पे गुर्राया
सनकी शाषक ने पिछड़े मुल्कों का हुक्का-पानी बंद करवाया
नेता ने वोटर को टोपी पहनाया
मुल्ला ने बेसर-पैर का फ़तवा सुनाया
सरकार ने जनता को रुलाया
सूदखोर ने गरीब का लंगोट नीलाम करवाया
ज़मींदार ने किसान को जुतिआया
पति ने बीवी को लातिआया
बामन ने भंगी-चमार को सड़क पे नंगा नचवाया
अहंकारी बाप ने बेटी को फांसी पे लटकाया
गोरे ने काले को गुलाम बनाया
अमीर ने गरीब को सताया
यह तो रोज़ की बात है
है ना!
कोई ब्रेकिंग न्यूज़ थोड़े ही है?
लेकिन सोचो
अगर एक दिन
गरीब, नौकर, इनसान, जनता, वोटर
काले, भंगी-चमार
बेटी, बीवी, बहुएँ
पिछड़े मुल्क, गरीब मुल्क
गली का कुत्ता और बंदर
अपनी किस्मत को अपने हिम्मत के नाम कर
सब के सब एक साथ
एक सुर में गुस्साए, झल्लाए, चिल्लाए, गुर्राए, गरियाए, सताए, लतिआए, जुतिआए और लाठिआए
फ़तवा सुनाए, हुक्का-पानी बंद करवाए
मुंह कला कर नंगा नचवाएं
कच्छा-लंगोट नीलम करवाएं
गुलाम बनाएं
तो फिर क्या होगा ?
क्या होगा !
हो सकता है कभी ऐसा भी कोई ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाए
मंत्री संतरी पे खिसिआया
मदारी बन्दर को लाठिआया
आवारा-निकम्मा अपनी किस्मत को गरिआया
महलों का कुत्ता गली के कुत्ते पे गुर्राया
सनकी शाषक ने पिछड़े मुल्कों का हुक्का-पानी बंद करवाया
नेता ने वोटर को टोपी पहनाया
मुल्ला ने बेसर-पैर का फ़तवा सुनाया
सरकार ने जनता को रुलाया
सूदखोर ने गरीब का लंगोट नीलाम करवाया
ज़मींदार ने किसान को जुतिआया
पति ने बीवी को लातिआया
बामन ने भंगी-चमार को सड़क पे नंगा नचवाया
अहंकारी बाप ने बेटी को फांसी पे लटकाया
गोरे ने काले को गुलाम बनाया
अमीर ने गरीब को सताया
यह तो रोज़ की बात है
है ना!
कोई ब्रेकिंग न्यूज़ थोड़े ही है?
लेकिन सोचो
अगर एक दिन
गरीब, नौकर, इनसान, जनता, वोटर
काले, भंगी-चमार
बेटी, बीवी, बहुएँ
पिछड़े मुल्क, गरीब मुल्क
गली का कुत्ता और बंदर
अपनी किस्मत को अपने हिम्मत के नाम कर
सब के सब एक साथ
एक सुर में गुस्साए, झल्लाए, चिल्लाए, गुर्राए, गरियाए, सताए, लतिआए, जुतिआए और लाठिआए
फ़तवा सुनाए, हुक्का-पानी बंद करवाए
मुंह कला कर नंगा नचवाएं
कच्छा-लंगोट नीलम करवाएं
गुलाम बनाएं
तो फिर क्या होगा ?
क्या होगा !
हो सकता है कभी ऐसा भी कोई ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाए
Tuesday, June 21, 2011
सागर की लहरें
सागर की लहरें किनारों से टकराती
बेबाक ठोकर मारती
किनारों को आगोश में ले इक पल को
पल में बिछुड़ दूर सागर में विलीन हो जाती
रेतीले किनारों पर उंगलिओं के निशान छोड़ जाती
और फिर लापरवाह इक दफ़ा, अगली दफ़ा
आलिंगन कर किनारों में समा जाती
यूहीं बेमाने ही टकराती बार-बार, हर बार
सख्त चट्टानों को रेत कर जाती
और हर दफ़ा रेतीले किनारों पर
उंगलिओं के निशान छोड़ आगे बढ़ जाती
और रेत पर उकेरे संदेसे स्नान कर, गोता लगा
डूब-मिट
सागर हो जाते
ख़ुद बेमाने हो
किनारों कर माने बन जाते
बेबाक ठोकर मारती
किनारों को आगोश में ले इक पल को
पल में बिछुड़ दूर सागर में विलीन हो जाती
रेतीले किनारों पर उंगलिओं के निशान छोड़ जाती
और फिर लापरवाह इक दफ़ा, अगली दफ़ा
आलिंगन कर किनारों में समा जाती
यूहीं बेमाने ही टकराती बार-बार, हर बार
सख्त चट्टानों को रेत कर जाती
और हर दफ़ा रेतीले किनारों पर
उंगलिओं के निशान छोड़ आगे बढ़ जाती
और रेत पर उकेरे संदेसे स्नान कर, गोता लगा
डूब-मिट
सागर हो जाते
ख़ुद बेमाने हो
किनारों कर माने बन जाते
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