ज़ालिम बाढ़ जब आती है
सब कुछ बहा ले जाती है
बाँध ढाती है
किनारों को दूर कहीं पीछे छोड़
सारे बंधन तोड़ जाती है
उमड़-घुमड़, इधर-उधर डोलाती है
मातम बरसाती हैं
हमेशा को ज़ख्म दे जाती है
निशानी छोड़ जाती है
दोस्त मेरे
इस लिए इस दफ़ा
रोको नहीं
गले लग
जी भर के रो लेने दो
अश्कों से मेरे रूह को मुझे धोने दो
इसे फेसबुक पे भी पढ़ा जा सकता है
सब कुछ बहा ले जाती है
बाँध ढाती है
किनारों को दूर कहीं पीछे छोड़
सारे बंधन तोड़ जाती है
उमड़-घुमड़, इधर-उधर डोलाती है
मातम बरसाती हैं
हमेशा को ज़ख्म दे जाती है
निशानी छोड़ जाती है
दोस्त मेरे
इस लिए इस दफ़ा
रोको नहीं
गले लग
जी भर के रो लेने दो
अश्कों से मेरे रूह को मुझे धोने दो
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