Tuesday, July 17, 2012

तेरे नयनों के नीर

तेरे नयनों के नीर 
बरसा गए सवालों के तीर 

असमंजस में हूँ 
ख़ुद के ज़ख्मों को देखूं 
या तेरे नयन पोंछूं 

या खुला छोड़ दूँ बहने उन्हें 
शायद एक दिन दरिया बन 
सैलाब लाए 
पानी, नमक, मवाद
को खुद में समा
साथ बहा ले जाए 
कोरा कर जाए फिर से इक दफ़ा


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Wednesday, July 4, 2012

मैं तो आज भीज गया

मैं तो आज भीज गया 
तेरी बारिश में आज भीज गया
तेरे आगोश में समा के मैं तो पसीज गया 
मन का मारा मरीज़ गया 

दूर बहुत ही  मैं दूर जितना गया 
तेरे करीब गया 
मैं तेरे और तू मेरे नसीब गया 
बेतरतीब सा कुछ, अबूझ-अजीब गया 

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