Friday, March 14, 2014

नाक पुराण - एक

ओ हुक्मरान !

गर चाहे तो तू 
तेरी नाक पे काला टीका लगवाले 
नीम्बू -मिर्ची का झाड़ उगा ले 
डर लगे तो बुल्लेट-प्रूफ उढ़ा ले  
ए टू ज़ेड सेक्युरिटी लगवाले  
जासूसों कि फ़ौज लगा ले 

नुमाइश लगा के, ऊँची बोली लगवाके, कीमत बढ़वाले 

लेकिन याद रख 
ज़ुलमतों के दौर में भी गीत  गाए जाएंगे 

और जिस दिन ये मज़लूम जाग जाएंगे 
तेरी नाक में घुस जाएंगे 
निम्बू-मिर्ची लगा, नमक छिड़क कर 
तेरी नाक का कचुम्बर 
लिट्टी के संग खा जाएंगे 

ओ हुक्मरान ! तेरी नाक कि तो ! … बजा जाएंगे 

और नाक-नाक में, सांस-साँस में 
आज़ादी के तराने गायेंगे  

ओ हुक्मरान !
याद रख 
ज़ुलमतों के दौर में भी गीत गाए जाएंगे





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