Sunday, June 26, 2016

पंखीड़ा रे - 1

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

तू तो उड़ता था हवा हवा और नगर नगर
न भाता था तुझको तो, न घोंसला और नाही घर
तेरे हिस्से  था पूरा अंबर
घनघोर घटा, मेहा और नभ तारों का नगर

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

क्यों उपवन पाकर दूर गया तू इतना रे?
बगिया बगिया डाली डाली क्यों मंडराना भूल गया
फुदक फुदक के उछल उछल के क्यों इतराना भूल गया
दाना पाके चुग्गा खाके क्यों मुस्काना भूल गया

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

क्यूँ भाया तुझको  इतना रे, इन पुष्पों का आडम्बर?
यह सूरत, रंग-ओ-खुशबू का बवंडर?

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

क्यूँ भुला है तू उड़ना रे?
इतना भी क्या? उड़ान बिना यह घोसला रे

पंख गंवा कर, हवा गुमा के, हर घाट का पानी चखना भूल गया

हे रे पंखीड़ा रे
काहे तूने नेह लगाया घोंसले से?

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