ज़िन्दगी गणित है
कभी बजाए जुड़ने के घटा जाए ज़िन्दगी
हँसते-हँसते रुला जाए ज़िन्दगी
जोड़, घटाओ, गुणा और भाग में
हर सिम्त भगाए ज़िन्दगी
गोल-गोल दायरे में
मदारी के बन्दर सा नाचाय ज़िन्दगी
खुद से खुद का मजाक बनाए ज़िन्दगी
ज़िन्दगी गणित है भईया
अधूरे को पूरा और पूरे को अधुरा बना जाए ज़िन्दगी
जुड़ते-घटते कट जाए ज़िन्दगी
No comments:
Post a Comment