Wednesday, September 22, 2010

ज़िन्दगी गणित है- दो

ज़िन्दगी गणित है
समझ नहीं आ रहा यार
कभी एक और एक दो की बजाए एक कर जाती है
तो कभी एक और एक मुझे ही शून्य कर जाती है
सारे फोर्मुले-समीकरण फेल
न जोड़-घटाओ का खेल
न गुणा-भाग का मेल
रेलम-पेल
हवालात-जेल
ना एक्स-वाय की रटन
ना पी-क्यू-आर का जाप
बाप रे बाप
मेरे ही हाथ से पिछवाड़े पे थाप
थप-थपाक
बख्श दे मेरे बाप
छुट्टा नहीं है फिर कभी आना
माफ़ करो आगे बढ़ो
कोई न कोई दे देगा
एक-आध आना
जब देबरा आना तो
आ कर जी भर के तबला बजाना
अभी जाओ
जिंदगी का गणित कभी और सिखाना

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