Monday, November 29, 2010

हाथी चला बाज़ार में

बिच्छू मरते दम तक डंक मारेगा
संत डूबते बिच्छू को हर बार किनारे पर लाएगा
चालाक लोमड़ी काले कौए की काएं-काएं को मीठी तान बताएगा
पेड़ का कौआ चालाक लोमड़ी की बातों में आएगा
चोंच खोल कर अपनी रोटी उस के भेंट कर जाएगा

और जब भी कभी मस्तन हाथी अपनी राह चलेगा
टेढ़ी पूंछ वाला कुत्ता भोंकेगा, भों-भों की खड़ताल बजाएगा

कबिरा भी बाज़ार में खड़ा-खड़ा एकतारे की तार छेड़ेगा
हथकरघे पे झीनी-मिनी चादर बनाएगा
फिर इक दिन उसी बाज़ार में मर जाएगा
बाजारू लोग उसकी बोली लगायेंगे
अपना अपना माल बताएंगे
लड़ते-कटते खुद अर्थी-कब्र चढ़ जाएँगे

लेकिन फिर भी बिच्छू डंक मारेगा,
संत बिच्छू की जान बचाएगा
कौआ लोमड़ी की बातों में आएगा
लोमड़ी मज़े से दावत उडाएगा
कुत्ता भौं-भौं कर पूंछ हिलाएगा
और हाथी अकेले ही जानिबे मंजिल को चला जाएगा और
कभी न कभी तो अकेले ही सड़क पार कर पाएगा
पगडण्डी छोड़ जाएगा

2 comments:

  1. Kabir koi organisation mein kaam nahi kartey they yaar isliye itney mazey ki baat karthey they.

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  2. matlab samaj me aa gaya tumhari yah kavita bahot kucch kah gai. thanks carry on

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