Thursday, May 31, 2012

इंतज़ार- 1


इंतज़ार
उसके संदेसे का हर बार 
कमज़ोर कर जाता है 

अब तो बस आखरी दफा  
दिलो दिमाग में बस जाएँ इस दफ़ा
अगली बार कहीं जाए तो साथ जाए 
और उसकी याद न रुलाए 

चलो इक बार फिर सही 
तकिए पे सर रख याद कर 
उसके बासी संदेसे पढ़ ताज़ा हो जाएँ 
आँखें मूँद गहरी नींद सो जाएँ 
शायद अगली सुबह 
आँख खुले और वो आए  

Saturday, May 26, 2012

आइना झूट नहीं बोलता


कहते तो ये भी हैं 
कि आइना झूट नहीं बोलता 
फिर पिछली दफ़ा
क्यूँ नज़र चुरा गया मुझसे ?
आइना दिखा गया मुझे  

Friday, May 25, 2012

उलझन ?!

एक
अजीब है न शायद 
कि जिसे सबसे ज्यादा जाना
वो था इक अफसाना 

दो 
यूँ कहना की मैंने उसे जाना नहीं 
समझा नहीं 
माना नहीं 
क्या इनका कोइ पैमाना नहीं 

तीन
वो यूँही आया
और गुज़र गया इक सफ़र सा 
इक नज़र में, चंद पहर में
कोहरे में ढके सहर सा 
सच ! गुज़र गया 

चार 
कहते हैं आईने में जो दिखता है 
करीब से दिखता है 
पर आइना जो दिखाता है बहुत दूर का दिखाता है 
गूढ़ सा  दिखाता है 

पांच
पात्रों के मुखौटे में 
मंच पर हर शख्श ओझल 
नाटक ख़त्म होने का इंतज़ार 
और ज़रा उनसे भी हो जाए आँखें चार 
फिर पात्र-परिचय, आचार-व्यवहार 
और खुल कर आए नेपथ्य का संसार 
तब शायद बुझ पड़े कहानी का सार 

Sunday, May 20, 2012

आँखें पनिया के रह गई


आज उसको देख कर
दिल फिर उमड़ा
आँखें पनिया के रह गई

डॉक्टर ने बताया 
लाइफ इस्टाइल है 
पोल्लुशन है 
आँखों में सूखा है 

हुं! 

दिल में तो बाढ़ है
फिर भला आँखों में आकाल है क्यूँ ?



Wednesday, May 2, 2012

सब माल है, माया है- २

शुक्रवार की बात है
बड़े दिनों बाद फिल्म देखने की हसरत में
पहुंचे एक बार फिर से माल में, सपत्नी
टाइम काटने और बोरियत दूर करने की कोशिश में घुसे
टाइम-आउट में फिर से

गर्दन घुमाते, नज़र फ़िराते शेल्फ दर शेल्फ
रुकना था, सो रुके
फिलोसोफी के शेल्फ के सामने
बेस्ट-सेलर किताबों की क़तार में ओशोरामदेवहिटलर 
और मनु भी 
मनु को देख, अनिश्चित ही हाथ में लेते हुएविचारते
ख़याल आया
हुज़ूर को तो शायद राजनीती के बेस्ट-सेलर खाने में होना था
इन्हीं की तो चली है, और चलती है
गाँव से शहर
सड़क से संसद तक

जाते-जाते
एक पहचानी शक्ल को फिक्शन के खाने में देख
एक पल को ठहरा, देखा
बाबा मार्क्स?!
सोचा किस उल्लू के पट्ठे ने यहाँ रखा है ?

फिल्म का टाइम हो आया था
सो बाबा मार्क्स को
टाइम-आउट के हवाले कर
गुम हो गए सिनेमा हॉल के गलियारे में
फिक्शन देखने, कहानी देखने