Wednesday, May 2, 2012

सब माल है, माया है- २

शुक्रवार की बात है
बड़े दिनों बाद फिल्म देखने की हसरत में
पहुंचे एक बार फिर से माल में, सपत्नी
टाइम काटने और बोरियत दूर करने की कोशिश में घुसे
टाइम-आउट में फिर से

गर्दन घुमाते, नज़र फ़िराते शेल्फ दर शेल्फ
रुकना था, सो रुके
फिलोसोफी के शेल्फ के सामने
बेस्ट-सेलर किताबों की क़तार में ओशोरामदेवहिटलर 
और मनु भी 
मनु को देख, अनिश्चित ही हाथ में लेते हुएविचारते
ख़याल आया
हुज़ूर को तो शायद राजनीती के बेस्ट-सेलर खाने में होना था
इन्हीं की तो चली है, और चलती है
गाँव से शहर
सड़क से संसद तक

जाते-जाते
एक पहचानी शक्ल को फिक्शन के खाने में देख
एक पल को ठहरा, देखा
बाबा मार्क्स?!
सोचा किस उल्लू के पट्ठे ने यहाँ रखा है ?

फिल्म का टाइम हो आया था
सो बाबा मार्क्स को
टाइम-आउट के हवाले कर
गुम हो गए सिनेमा हॉल के गलियारे में
फिक्शन देखने, कहानी देखने

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