इंतज़ार
उसके संदेसे का हर बार
कमज़ोर कर जाता है
अब तो बस आखरी दफा
दिलो दिमाग में बस जाएँ इस दफ़ा
अगली बार कहीं जाए तो साथ जाए
और उसकी याद न रुलाए
चलो इक बार फिर सही
तकिए पे सर रख याद कर
उसके बासी संदेसे पढ़ ताज़ा हो जाएँ
आँखें मूँद गहरी नींद सो जाएँ
शायद अगली सुबह
आँख खुले और वो आए
Good one....yearning,pinning and waiting......
ReplyDeleteNice one.....Nadim, drills down the heart
ReplyDeleteAzad poem ke siwa kuch wazandar bhi likhye bhai.
ReplyDelete