तुझे आखरी बार देखने से पहले भी लगा था
कि शायद यह आखरी बार है
कितना वक्फ़ा गुज़र चुका उस आखरी बार को
कुछ घंटे ही बीते हैं अभी
लेकिन मुझे खौफ़ है और मालूम भी है शायद
कि ये घंटे कुछ ही घंटों बाद
दिन, महीनें, साल और सदिओं में बदल जाएँगे
और बदल जाएँगे
मेरे अन्दर बाहर कि मिट्टी को
हवा को और पानी को भी
और बदल जाएगी मेरी ज़मीन भी
पर क्या पता ?
आखरी बार कि तरह
फिर नज़र आओ कहीं
आखरी बार को
बस एक बार को
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