Wednesday, October 20, 2010

बस एक बार को

तुझे आखरी बार देखने से पहले भी लगा था
कि शायद यह आखरी बार है
कितना वक्फ़ा गुज़र चुका उस आखरी बार को
कुछ घंटे ही बीते हैं अभी
लेकिन मुझे खौफ़ है और मालूम भी है शायद
कि ये घंटे कुछ ही घंटों बाद
दिन, महीनें, साल और सदिओं में बदल जाएँगे
और बदल जाएँगे
मेरे अन्दर बाहर कि मिट्टी को
हवा को और पानी को भी
और बदल जाएगी मेरी ज़मीन भी
पर क्या पता ?
आखरी बार कि तरह
फिर नज़र आओ कहीं
आखरी बार को
बस एक बार को

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