जिल्द लगी ज़िन्दगी की किताब पर
खिंची जज़्बातों की
सुर्ख़-ओ-स्याह
आड़ी-तिरछी गोल-चौकोर लकीर
लकीरों के शब्द
शब्दों के चेहरे और चेहरों से शब्द
चुपचाप, ख़ुद को समेटे
अन्दर ही अन्दर
सिमटते, सहमे हुए से शब्द
और शब्दों में क़ैद तस्वीर
वोही तस्वीर
सोंचता हूँ फाड़ दूँ पन्ने को
जिस पर उकेरे हैं मैंने स्याह रोशनाई से शब्द
और बिखेर दूँ हवा में, उड़ने को, शब्दों को सारे
कर दूँ आज़ाद उन्हें, उनकी राह पर
और उघाड़ दूँ, किताब पर लगी जिल्द भी
ख़ुद भी उडू, तैरुं, बह चलूँ
हवाओं की डगर
और जिल्द बन कर मढ़ जाऊं ज़िन्दगी की किताब पर
Very beautiuful lines Nadim. I like this depiction better than Tasveer-1. The conclusive line is just awesome!
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