Sunday, June 3, 2012

इंतज़ार- 2

इंतज़ार दुश्मन सा

लेकिन दुश्मन तो बे-रोक टोक आता जाता है 
बेवजह भी हर वक़्त नज़र आता है 
मिल जाता है 
हर मोड़ पर भिड़ जाता है 
यार से ज्यादा कहीं 
तो अब दुश्मन भाता है 
कम से कम रोजाना मिलकर तो जाता है 
दुश्मनी तो निभाता है 
यार तो अपना बड़ा इंतज़ार कराता है 
यारी भी नहीं निभाता है 

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