Saturday, April 28, 2012

सब माल है, माया है- १



अभी कुछ दिनों पहले की बात है

इक शाम बंगलुरु के अर्ध-विक्सित से रिहायशी इलाके के

रिलायंस टाइम-आउट में

जग-मग बिजली में नहाई

किताबों के शेल्फ पे

एक से साथ एक मुफ्त का अदभुत तमाशा

मनु के साथ मार्क्स फ्री

मनमोहन के साथ अन्ना फ्री

बुश के साथ फिदेल और शावेज़ फ्री

और बोनस में माल फ्री यानि मेम्बरशिप फ्री

है न अदभुत ?!

फ्यूज़न है भाई

सब माल है, माया है

2 comments:

  1. Writing good and showing naked reality of consumerism draped in so called modern values where profits is motive and not ideological improvements....Anand.

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