Sunday, June 26, 2016

पंखीड़ा रे- 4

नील गगन में उड़ने की प्यास अभी भी बाकी है
पंख खोल के उड़ने का वो एहसास अभी भी बाकी है
हांफ हांफ के सांस सांस में,
फल्लांग मार के उड़ चलने का अरमान अभी भी बाकी है

छूट गए उन रस्तों के निशान अभी भी बाकी है

कुछ भूले बिसरे गीतों के उन्वान अभी भी बाकी है
मुक्ति-गान अभी भी बाकी है

इन ज़र्ज़र होते पंखों के एहसान अभी भी बाकी है
हौसला-ए-उड़ान अभी भी बाकी है

सच-मुच
नील गगन में उड़ने की प्यास अभी भी बाकी है

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