Wednesday, April 18, 2012

किस्मत

पिछले सावन की ही तरह इस बार भी
बगीचे के आम पर फिर से
हरी-हरी मुलायम कोपलें आईं
इस बार कोपलों के साथ
कुछ फूल भी आए
कुछ सफ़ेद, कुछ हल्के ज़र्द

फूलों पर भंवरें-मधुमक्खियाँ भन-भनाने लगी
और माली कहने लगा
किस्मत अच्छी रही तो
बादलों के फूटते ही
एक-आध फल भी नसीब हो जाए शायद इस मौसम
आमरस न सही मगर चटनी तो चखाएगी ही

पता नहीं क्यूँ ?
कल से ही माली ने आम की चौकसी बढ़ा दी है
और हमें भी उस पेड़ पर खेलने की मनाही हो गयी है
उसके गिर्द काँटों का बाड़ा बना दिया है उसने
और एक लकड़ी के तख्तों का फाटक लगाया है
सिर्फ अपने आने-जाने के लिए

माली के कहने पर
गाँव-मोहल्ले की महिलाओं ने मिल कर न जाने क्यूँ
उसके तनों पर लाल-पीले डोरों का ताना-बना गढ़ा है
पता नहीं क्यूँ ?

लेकिन कुछ भी कहो
आम की तो किस्मत ही खुल गई है
है ना?

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