Thursday, July 15, 2010

बोनसाई

बोनसाई-
एक पेड़ गमले के भीतर
काटो- उसकी मोटी जड़ को, काटो
हर उस बढती हुई टहनी को
जिससे लगता हो की
वह पेड़ सम्पूर्ण हो जाएगा, सम्पूर्ण-
जो कम की हों उन्हें बढ़ने दो
बढ़ने दो
तार से बांध दो-
ताकि
ज़रुरत के मुताबिक, जब चाहो
अपने अनुसार मोड़ सको-
ना-ना यूरिया अधिक नहीं, डालो
लेकिन ज़रुरत से थोडा कम-
नहीं भी डालोगे तो चलेगा उसका कम-
डरो मत बोनसाई तैयार हो जाएगा-
दो-एक डेढ़ साल के पेशेंस के बाद
आपके मुताबिक हो सकेगा-
अथक इंतज़ार और लगन के बाद
सारी मेहनत वसूल-
तारें जिसका वह आदि है
अब बना, बोनसाई
ड्राविंग रूम की, चार दिवरिओं की,
शोभा, बनेगा आपकी इज्ज़त- माली का नाम-
लेकिन इसका नाम ?
इसका नाम ? बोनसाई तो बोनसाई होता है
और हाँ इसकी कोई इज्ज़त भी नहीं होती
इसका कुछ भी अपना नहीं होता- होता है
तो यह सिर्फ आपका-
आख़िरकार
माली सोचता है
उसने उस पेड़ को दे दी है
एक नई जिंदगी
पर क्या वाकई ?

3 comments:

  1. ब्‍लॉग के लिए बधाई। अच्‍छी कविता है। कविताओं का दौर चल रहा है।

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  2. बहुत ख़ूब !!!! लिखते रहना ज़रूरी है।

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  3. Very beautiful one Nadim and very true for women. Is it a newly written one or one of those you had written in Aligarh? I remember you reading out this one to me. Am I right?

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