Tuesday, July 27, 2010

बेवजूद तेरी याद में...

तेरे वजूद में तलाशता खुद को बेवजूद सा मैं
और ग़मों-ख़ुशी में तलाशता अपने आप को लापता सा
भटकता तेरे ज़ेहन के कोने में, दिल के बाहर और भीतर भी शायद

तेरे आँखों से ढलकने को बेचैन मुन्तज़िर आँसू
ढलकते, तुम्हारे रुखों पर बिछ जाते और छोड़ जाते
पहले से भी ज़्यादा नमक
धुल जाती तुम्हारी आत्मिक संरचना, तुम्हारा मन
निर्मल, पहले से भी ज़्यादा साफ़
और घुल जाती सारी परछाईयाँ
जानदार परछाईयों के साथ बेजान पल
घुल जाते

मैं पास बैठा वहीँ दूर से तकता चुपचाप सब कुछ
न जाने किसके इंतजार में
और अपने खुरदरे उंगलिओं से
तुम्हारे गीले आँखों को गर्मी देता
तुम्हारे अश्कों को छूता, सोंखता अपने अन्दर
और खुद भी सूखने लगता
गीला हो जाता
और तुम्हारे नमक को समेटने कि चाह में
बार-बार उन अश्कों को छूता, सोंखता, सूखता
गीला-गीला निर्जान सा तुम्हारे इर्द-गिर्द
तुम्हारे मन को छूने की लालसा में
ख़ुद ही ख़ुद में सालता
और उदासीन, चला जाता शुन्य में दूर कहीं
और कोशिश करता उन चमकते नमकीन अश्कों की बूंदों में
तलाशने की, अपने आप को, अपने चेहरे को
और अश्कों पर लिखी इबारत को पढ़ते-पढ़ते मिटने लगता
और आंसुओं में अपनी परछाई को सूखता देख
सूखने लगता
फिर तुम्हारे नमक को समेटते-समेटते
ख़ुद सिमट मिट जाता
तुम्हारे शांत होने का इंतजार करता
और शांत हो
तुम मेरा हाल पूछती
तो शांत होकर भी, मेरा वजूद अशांत हो जाता
प्रशांत सा उफनता
मेरे वजूद को बहा, तेरे वजूद से दूर करता
और एक बार फिर, तुम्हारे बिना, अकेला
बेवजूद हो जाता
तुम्हारी याद में .

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