Wednesday, July 28, 2010

तुम्हारी याद में

एक ख़्वाब देखा है मैंने
साथ-साथ, मैं और तुम
सीली काई लगी दीवार से टेक लगाए
हाथों को क़रीब-क़रीब रखे
बिना बात बिलकुल शांत, चुपचाप
चुप्पी समेटे
चाहता हूँ
कुछ देर और यूँहीं
चुपचाप रहूं और
समेट लूँ सारी ख़ामोशी तेरी
तेरे खामोश दिल की धड़कन
तेरे खामोश दिल की आवाज़
और ख़ामोशी से
चला जाऊं कहीं
जहाँ रहूं मैं, सिर्फ मैं और
बातें करती तुम्हारी वो ख़ामोशी
तुम्हारी वही खामोश धड़कन
और साथ रहे सिर्फ
तेरे खामोश दिल की आवाज़
हमेशा
मेरे साथ तुम, सिर्फ तुम

No comments:

Post a Comment