Wednesday, July 28, 2010

सपनें देखने के लिए खेद

सपनें बड़े बदतमीज़ होते हैं
ना वक़्त की कद्र
ना जगह, ना संजोग
ना अवसर की परवाह

बेपरवाह सपनें कभी भी
कहीं भी, एक अप्रत्याशित
अपरिचित सेल्समैन की तरह
काल-बेल दबा
डिंग-डोंग की तान छेड़
घुस जाते हैं
पहले सीधे दिमाग
और फिर सरकते-सरकते
क़तरा-क़तरा दिल में

ख़ुद को अपना, क़रीबी, शुभेक्षक बता
लेन-देन का सिलसिला शुरु करते
हम जज़्बात बेंचते और सपने ख़रीदते
जज़्बाती हो जाते
फिर और सपनें
सपनें, सपनें, सपनें
स्वप्नील, सुन्दर, लुभावने, घुमावदार, सीढ़ीदार,
सांप जैसे, सात सरों वाले फुफकारते शेषनाग जैसे
सांप-सीढ़ी का खेल
किस्मत के सांप डंसते
डरावने सपनों से डराते
और रोमांच की सीढियाँ ऊपर जाती
सपनें दिखाती, शेखचिल्ली बनाती
और हम सपनों को फुग्गे सा फुलाते
हांफ-हांफ के फुलाते
फुलाते-फुलाते भड़ाम
या फिर छेद वाले रब्बरदार फुग्गे को
फुलाते जाते हांफते जाते, फुलाते जाते
हांफते, मरते, सपनें देखते
वक़्त आता जब फुग्गे आदत बन जाते
फिर बिना काल-बेल दबाए
फुग्गे वाले आते जाते, अन्दर बाहर, ऊपर-निचे
नींद तोड़, सो जाने को मजबूर करते
और सपनें सो कर हम जब घड़ी पर नज़र करते
और नौकरी पहुँचने में हुई देरी का एहसास कर
सपनों को, नांक पूछे टिश्यु पेपर की तरह
ममोड़ कर डस्ट-बिन में फेंक
भाग-भाग कर भाग-दौड़ में लिप्त हो जाते
और बॉस की ताज़ी झिडकी सुन
सपनों पर खेद जताते और सपनें ना देखने का सपना देख
जुंत जाते
रोज़ी, रोटी, कपड़ा, मकान और जोरू के सपनें में
मस्त सुबह से शाम
और फिर सारी रात
रोज़ सपनें देखते और सपनों पे खेद जताते
काट देते ज़िन्दगी
फिर सपनों की तरह भुला दिए जाते
और श्रधान्जली के खेदमय पुष्पमाल से
हमेशा के लिए अकेले सपनें बुनने को दफ़्न कर दिए जाते
और सपनें
आपके बगल में लेटे खेद जताते
आपके साथ वहीँ दफ़्न हो जाते
हमेशा के लिए

No comments:

Post a Comment