Tuesday, July 27, 2010

आवाजें .

आँखें बंद किए मैं
सुनता रहा आवाजें
चप्पलों के ज़मीन से टकराने की आवाजें
तलवों और जूतों की भी
आती आवाजें
जाती आवाजें
ठहरी आवाजें
आकर लौट जाती आवाजें
लौट कर फिर से वापस आती आवाजें
नज़दीक होती तेज़ आवाजें, बहुत तेज़
दूरी के साथ मध्धम आवाजें
आकर
दूर हो गईं
ठहरती आवाजें
गुज़रती आवाजें
चीखती आवाजें

और इन आवाज़ों के पीछे
चुप्पी
बहुत तेज़, एकसुर, एकसार, चीख-चीख के कह रही हैं
कि आवाज़ों से परे
उसकी दुनिया में ख़ामोशी से आगे
विरोधाभास भरी एक ज़िन्दगी.

No comments:

Post a Comment