Tuesday, July 27, 2010

सागर के तिरछे कोने पर सूरज .

सागर के तिरछे कोने में सूरज
शाम का सूरज और भोर का भी
बुझा जला
उबले अंडे की पीली ज़र्दी
गोल
लाली कुछ कम कम है
लगता है कवी ने कविता की लाल सियाही में सोडा वाटर ज्यादा मिला दिया है
और चित्रकार ने लाल रंग में पानी कुछ ज्यादा मिलाया है
याकि अपने ब्रुशों को पानी में कुछ देर तक डुबोया है

भोर के बाद दिन के साथ
लाली गम हो जाएगी और चमक उठेगी
चकाचौंध-ओझल
शाम ढलने पर
एक बार सूरज फिर लाल होगा
फीका, पनियाला लाल
और दे जाएगा सुकून

सोंच
पनियाते रंग का और गंदली धुंध का भी
एक बार फिर
सुबह तक .

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