Thursday, July 29, 2010

उधेड़बुन

हर शाम के बाद सवेरा
लेकिन सवेरे के बाद की शाम
और उससे भी काली रात का क्या ?

हर कली का फूल
लेकिन फूल के मुरझाने का क्या ?
हर बीज का अंकुर, अंकुर का पेड़
लेकिन पेड़ के सूख कर गिर जाने का क्या?

हर युध्ध के बाद शोर
शोर के बाद की चुप्पी
लेकिन इस चुप्पी के बाद के शोर
और फिर से चुप्पी का क्या?

अकेली ज़िन्दगी में साथ
लेकिन साथ के बाद अकेली ज़िन्दगी का क्या ?

शाम-सवेरा, कली-फूल, बीज-अंकुर-पेड़, हरे पत्ते- पीले पत्ते-झाड़ते पत्ते, शोर-चुप्पी, साथ-अकेलापन

क्या है ये ?
एक मकडजाल या उधेड़बुन ?

अँधेरे, ख़ामोशी और अकेलेपन के बीच
फंसा इंसान ।

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